।। दोहा ।।
बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
अनुवाद: मैं श्रीगुरु के चरणों की कमलरज से अपने मनरूपी दर्पण को स्वच्छ करके श्री रघुवर के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — इन चारों फलों को देने वाला है।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार।।
अनुवाद: मैं यह जानकर कि मेरा तन-मन बुद्धिहीन है, पवनपुत्र हनुमान जी का स्मरण करता हूँ। कृपा करके मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए और मेरे समस्त कलेशों व विकारों का नाश कीजिए।
।। चौपाई ।।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।१।।
अनुवाद: हे हनुमान जी! आप ज्ञान और गुणों के सागर हैं। हे वानरश्रेष्ठ! आपकी कीर्ति तीनों लोकों में प्रकाशित है। आपको बारंबार प्रणाम।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।२।।
अनुवाद: आप श्रीराम के परम सेवक हैं और अतुलनीय बल के धाम (आधार) हैं। आप अंजनी पुत्र और पवनसुत के नाम से प्रसिद्ध हैं।
कुमति निवार सुमति के संगी।।३।।
अनुवाद: हे महावीर बजरंगबली! आप अपार पराक्रम और वज्र समान शरीर वाले हैं। आप कुबुद्धि का नाश करते हैं और सद्बुद्धि के सहचर हैं।
कानन कुण्डल कुँचित केसा।।४।।
अनुवाद: आपका वर्ण स्वर्ण के समान है और आप सुंदर वस्त्रों से शोभायमान हैं। आपके कानों में कुण्डल हैं और केश घुंघराले व आकर्षक हैं।
कॉंधे मूँज जनेऊ साजै।।५।।
अनुवाद: आपके एक हाथ में वज्र और दूसरे में ध्वजा सुशोभित होती है। आपके कंधों पर मूंज का जनेऊ (यज्ञोपवीत) शोभा पाता है।
तेज प्रताप महा जग बंदन।।६।।
अनुवाद: आप शंकरजी के अंशावतार और केसरी नंदन हैं। आपका तेज और पराक्रम इतना महान है कि समस्त संसार आपकी वंदना करता है।
राम काज करिबे को आतुर।।७।।
अनुवाद: आप विद्याओं में पारंगत, गुणों से सम्पन्न और अत्यंत बुद्धिमान हैं। आप श्रीराम के कार्यों को करने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं।
राम लखन सीता मन बसिया।।८।।
अनुवाद: आप श्रीराम के चरित्रों को सुनने में अत्यंत रुचि रखते हैं। आपके हृदय में श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता सदा विराजमान रहते हैं।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।९।।
अनुवाद: आपने छोटा रूप धारण करके सीता माता को दर्शन दिए और भयानक रूप लेकर लंका को जलाकर भस्म कर दिया।
रामचंद्र के काज सँवारे।।१०।।
अनुवाद: आपने भीम रूप धारण करके असुरों का संहार किया और श्रीराम के कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न किया।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।११।।
अनुवाद: आपने संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण जी को जीवनदान दिया। इससे श्रीराम अत्यंत प्रसन्न हुए और आपको हर्षपूर्वक हृदय से लगा लिया।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।१२।।
अनुवाद: रघुनाथ जी ने आपकी अत्यधिक प्रशंसा की और कहा—‘हनुमान! तुम मुझे भरत के समान प्रिय हो।’
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।१३।।
अनुवाद: सहस्त्रों मुखों से तुम्हारे यश का गान होता है। यह कहकर श्रीराम ने आपको हृदय से लगा लिया।
नारद सारद सहित अहीसा।।१४।।
अनुवाद: सनकादि ऋषि, ब्रह्मा, नारद, सरस्वती तथा शेषनाग सहित सभी देवता और मुनि आपका गुणगान करते हैं।
कवि कोविद कहि सके कहाँ ते।।१५।।
अनुवाद: यमराज, कुबेर, दिक्पाल और अन्य देवता भी आपके गुणों का वर्णन करते हैं, किंतु कवि और विद्वान भी उन्हें पूर्ण रूप से कह नहीं सकते।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।१६।।
अनुवाद: आपने सुग्रीव को श्रीराम से मिलाया और इस प्रकार उन पर उपकार कर उन्हें किष्किन्धा का राज्य दिलाया।
लंकेस्वर भये सब जग जाना।।१७।।
अनुवाद: आपके परामर्श को मानकर विभीषण ने श्रीराम की शरण ली और लंका के राजा बने—यह बात संपूर्ण संसार जानता है।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।१८।।
अनुवाद: आपने बाल्यकाल में हजारों योजन दूर स्थित सूर्य को एक मीठा फल समझकर निगल लिया था।
जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं।।१९।।
अनुवाद: आपने श्रीराम की अंगूठी मुँह में रखकर समुद्र को पार किया, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।२०।।
अनुवाद: संसार के जितने भी कठिन कार्य हैं, वे आपकी कृपा से सहजता से संपन्न हो जाते हैं।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।२१।।
अनुवाद: आप श्रीराम के द्वार के प्रहरी हैं। आपकी अनुमति के बिना वहाँ कोई प्रवेश नहीं कर सकता।
तुम रक्षक काहू को डरना।।२२।।
अनुवाद: आपकी शरण में आने वाला सभी सुखों को प्राप्त करता है। जब आप रक्षक हों तो किसी बात का भय नहीं रहता।
तीनों लोक हाँक तै काँपै।।२३।।
अनुवाद: आपका तेज अत्यंत प्रबल है जिसे केवल आप ही नियंत्रित कर सकते हैं। आपकी गर्जना से तीनों लोक काँप उठते हैं।
महावीर जब नाम सुनावै।।२४।।
अनुवाद: जब कोई महावीर हनुमान का नाम लेता है, तब भूत-पिशाच जैसे नकारात्मक तत्त्व पास भी नहीं फटकते।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।२५।।
अनुवाद: जो वीर हनुमान का निरंतर जाप करता है, उसके सारे रोग और पीड़ाएं दूर हो जाती हैं।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।२६।।
अनुवाद: जो मन, वचन और कर्म से हनुमान जी का स्मरण करता है, हनुमान जी उसे हर संकट से उबार लेते हैं।
तिनके काज सकल तुम साजा।।२७।।
अनुवाद: तपस्वी श्रीराम सब पर शासन करते हैं, और आपने उनके सभी कार्य पूरे किए।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।२८।।
अनुवाद: जो कोई भी अपने मन की कामना लेकर आता है, वह अमूल्य जीवनफल (मोक्ष और भक्ति) प्राप्त करता है।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।२९।।
अनुवाद: आपके तेज और पराक्रम की ख्याति चारों युगों में फैली हुई है और उससे पूरा संसार प्रकाशित है।
असुर निकंदन राम दुलारे।।३०।।
अनुवाद: आप साधु-संतों की रक्षा करते हैं, असुरों का संहार करते हैं और राम जी के अत्यंत प्रिय हैं।
अस बर दीन जानकी माता।।३१।।
अनुवाद: आपको माता सीता से यह वर प्राप्त है कि आप भक्तों को आठ सिद्धियाँ और नौ निधियाँ प्रदान करने में सक्षम हैं।
सदा रहो रघुपति के दासा।।३२।।
अनुवाद: आपके पास राम-भक्ति रूपी अमृत है। आप सदा श्रीराम के दास रूप में भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं।
जनम जनम के दुख बिसरावै।।३३।।
अनुवाद: आपकी भक्ति करने से वह सीधा श्रीराम तक पहुँचती है और जन्म-जन्मांतर के दुखों का अंत हो जाता है।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई।।३४।।
अनुवाद: आपकी कृपा से मृत्यु के समय श्रीराम के धाम की प्राप्ति होती है, और पुनर्जन्म होने पर व्यक्ति हरिभक्त ही कहलाता है।
हनुमत सेइ सर्व सुख करई।।३५।।
अनुवाद: जब कोई अन्य देवताओं में चित्त न लगाकर केवल हनुमान जी की सेवा करता है, तो वह सभी सुखों को प्राप्त करता है।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।३६।।
अनुवाद: जो व्यक्ति बलशाली हनुमान जी का स्मरण करता है, उसके सारे संकट और पीड़ाएँ समाप्त हो जाती हैं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।३७।।
अनुवाद: हे गोसाईं हनुमान जी! आपकी बारंबार जय हो। कृपया मुझ पर गुरु के समान अनुकंपा करें।
छूटहिं बंदि महासुख होई।।३८।।
अनुवाद: जो व्यक्ति सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह बंधनों से मुक्त होकर परम सुख को प्राप्त करता है।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।३९।।
अनुवाद: जो हनुमान चालीसा का नियमित पाठ करता है, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं — इस बात की साक्षी स्वयं भगवान शंकर हैं।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।४०।।
अनुवाद: तुलसीदास जी कहते हैं — मैं सदा श्रीराम का दास हूँ। हे नाथ हनुमान जी! कृपया मेरे हृदय में सदा निवास करें।
।। दोहा ।।
रामलखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।
अनुवाद: हे पवनपुत्र हनुमान! आप संकटों को हरने वाले हैं, और मंगल स्वरूप हैं। कृपया राम, लक्ष्मण और सीता जी के साथ मेरे हृदय में निवास कीजिए।